Sunday, March 18, 2018

चैत आ गया .....




चैत आ गया फि‍र से..केवल आया ही नहीं, पूर्ण यौवन पा इठला रही है हवा। कोमल कुसुम की ललछौहीं पत्‍ति‍यां मोह रही मन को। रक्‍तपलाश से दहक रहा गांव-जंगल। सुबह-सवेरे पलाश की नारंगी चादर बि‍छी है धरती पर।  पीले महुए से पटी गई है जमीन भोर में।

मंद-मंद बहती है बयार सुबह सवेरे चैत में। खेतों में गेहूं की बालि‍यां जवान हो गई है। दोपहर की हवा सर्र.सर्र कर गेहूं की बालि‍यों को हि‍लाती है। जब भांट के फूलों की मादक गंध हवा में घुलमि‍ल जाए, जब नीम के हल्‍के बैंगनी फूल खि‍ल-खि‍ल जाए, जब केंद के फल पक जाए, अरहर के दाने घर के आंगन में आ जाए और जब कोयल के साथ-साथ ढेंचुआ भी पेड़ की फुनगि‍यों में बैठा दि‍ख जाए तो समझना चैत आ गया।

सुबह शाम हल्‍की ठंड और दि‍न गरमाया सा लगे, मंदि‍रों और बरगद के नीचे से जब चैता की स्‍वरलहरि‍यां कानों से टकराए..'' रसे-रसे बहे जब पवनमा/ हो राम बीतल फगुनमा..तो समझि‍ए चैत आ गया।

 चैत माह चि‍त्‍त को सुकून देता है। फागुन जि‍या में टीस उठाता है, पर चैत जैसे सांझ को बैलगाड़ी में टुनटुन करती घंटि‍यों के साथ घर लौटने का अहसास है। रबी फसल से लदकर बैलगाड़ी जब घर आए,  अंगना में गि‍रे पत्‍तों को हवा बुहार ले जाए, रमुआ का बेटा जब गलि‍यों में साईकि‍ल का चक्‍का घुमाए और बच्‍चे राहड़ के दाने पीट-पीट छि‍नगाए तो समझना चैत आ गया।


2 comments:

कविता रावत said...

सच चैत खुशहाली की खुशखबरी देता है हमें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Sweta sinha said...

बहुत बहुत सुंदर वर्णन....परंपरागत पक्षियोंं,फूल,पत्तों के नाम लोग भूलते जा रहे है आपके लेख ने सब जीवित कर दिया।