Saturday, October 24, 2015

वि‍र्सजन के बाद मन.....



मां दुर्गा की प्रति‍मा वि‍सर्जन के बाद दस दिनों की व्‍यस्‍तता बि‍ल्‍कुल समाप्‍त हो गई। इतने दि‍न कैसे नि‍कले पता ही नहीं चला और अब अजीब सा सन्‍नाटा पसरा है। मौसम बदलने कर तीव्र अहसास हो रहा है। हालांकि‍ हर उत्‍सव के बाद सूनापन पसरता है आसपास क्‍योंकि‍ त्‍योहार का मतलब ही होता है अत्‍यधि‍क खुशी, उमंग और व्‍यस्‍तता भी।

जब छोटी थी तो बड़ों को कहते सुना था कि‍ दशमी के दि‍न मां की आंखों में उदासी होती है। उन्‍हें खोईंछा देकर वि‍दा करते वक्‍त मां, चाची, ताई, बुआ की आंखों में से नमी छलकती देखी है मैंने। तब मुझे लगता था कि‍ ये बेकार ही रोती हैं। पूजा हुई, मि‍ट्टी की मूरत थी लोग फि‍र से पानी में डाल देते हैं। अगले वर्ष फि‍र मूर्तिकार नए ढंग की प्रति‍मा बनाएगा। दस दि‍न रौनक होगी। इसमें रोने जैसा क्‍या है....

पर अब न जाने वैसी ही भावनाओं को अपने अंदर भी उमड़ता पा रही हूं। मां की प्रति‍मा को जाते देख नयन अनजाने ही भर आए। ये बढ़ती उम्र का असर है या परि‍वार और अपने लोगों के प्रति‍ बढ़ती भावनात्‍मक नि‍र्भरता की। अब बेहद टची हो गई हूं। पहले ही अल्‍हड़ता और नि‍र्वि‍कार रहने का गुण हां, मैं इसे अपना गुण ही मानती थी, अब खोने लगी हूं। अब कि‍सी से भी जुड़ी कोई बात हो, जो उनकी तकलीफ दर्शाए, मन मेरा भी भीग जाता है।

हां, बात हो रही थी पूजा के बाद पसरे सन्‍नाटे की। बड़ा अजीब एहसास है आज। दोपहर की धूप तीखी लग रही है। हवा में हल्‍की ठंड है, पर जैसे छुपी हुई। रात को महसूस कि‍या सर्दियां उतर आई हैं दबे पांव। कल शाम तक उत्‍साह बरकरार था। माता के वि‍र्सजन के समय बंगाली औरतों का सिंदुर खेला और थि‍रकते, नृत्‍य करते पांव देखकर मेरा भी मन कि‍या उनके साथ नाचने लगूं। एक साथ हु ...ऊ..ऊ कि‍ ध्‍वनि‍ नि‍कालते और मगन होकर नाचते देखना बहुत भला लगता है।

मगर आज...जैसे सब रूक गया है। मन उदास और बदन शि‍थि‍ल, जैसे मीलों दौड़ने के बाद कोई अपनी मंजि‍ल पर पहुंचकर एकाएक गि‍र जाता है। सारी ताकत समाप्‍त हो जाए जैसे। पत्‍ति‍यां भी धीमे-धीमे हि‍ल रही हैं, जैसे पूरी सृष्‍टि‍ थकी हो।

सच है न....मन के हि‍साब से दुनि‍यां चलती है,...मन का खालीपन पूरी दुनि‍या को खाली कर देता है और मन की हरि‍याली पतझड़ में भी बहार ला देती है....।

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